मातृभाषा का महत्व ,mother tongue

जिस भाषा को मनुष्य स्वाभाविक अनुकरण द्वारा बाल्यकाल से सीखता है उसे हम उसकी मातृभाषा कहते हैं इसी बात को हम दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि जिस भाषा को हम माता की गोद में सीखते हैं वह हमारी मातृभाषा हो सकती है या मातृभाषा है 

क्यों है मातृभाषा का महत्व


मातृभाषा शब्दों में माता शब्द का अधिक महत्व दिया गया है और यह उचित भी है।यद्यपि हमारे जन्म का कारण माता और पिता दोनों ही हैं इसलिएह शरीर में अधिकांश भाग माता का होने से एवं उसके द्वारा हमारा भरण पोषण होने के कारण माता की ही महत्ता ज्यादा होती है इसलिए जन्म जन्मभूमि को मातृभूमि कहते हैं पित्र भूमि नहीं अमेरिका जर्मनी रूस आदि देशों में चाहे जो कुछ भी हो किंतु भारतवर्ष में ऐसा ही कहते हैं भारतवर्ष में माता शब्द को बढ़ा पवित्र माना गया है माता शब्द में एक साथ स्नेह और आदर का भाव होता है माता शब्द के सुनते ही इन भाव की जागृति हो जाती है और एक आनंद का अनुभव होने लगता है मातृभाषा के साथ भी यही भाव लगे हुए हैं
mother tongue, मातृभाषा का महत्व
हमारा प्रारंभिक ज्ञान मातृभाषा द्वारा ही होता है और हम अपने भावी ज्ञान को भी वह हमें चाहे जिस भाषा द्वारा प्राप्त हो मातृ भाषा द्वारा प्राप्त किए हुए ज्ञान के आलोक में ही देखते हैं मातृभाषा हमारे बाल्यकाल की भाषा होने के कारण हमारे मानसिक संस्थान कामजबूत अंग बन जाती है मनुष्य चाहे जितना विदेशी रंग में रंग जाए किंतु सच्चे हर्ष और घोर विपत्ति के अवसर पर मातृभाषा से ही बोलता है।

विपत्ति में मातृभाषा निकल ही जाती है


     कहा जाता है कि एक जासूस को किसी विशेष शक्ति की जाति और जन्मभूमि का पता नहीं चलता था इस समस्या को हल करने के लिए उसने अपने गुरुदेव की शरण ली उन्होंने सलाह दी कि रात्रि को जब वह व्यक्ति घर लौटता हो उसकी पीठ में अचानक एक गुस्सा मारना और देखता कि वह किस भाषा में बोलता है जिस भाषा में अपने आहत होने का भाव प्रकाशित करें उसी को उसकी मातृभाषा समझना इस कथा में बहुत कुछ मनोवैज्ञानिक तथ्य हैं वह हमको अपने स्वजनों की ओर खींचता है हमारी मातृभाषा के साथ आत्मरक्षा के भाव लगे हुए हैं जिस समय हमारी आत्मरक्षा और संकट में अवसर आता है हम पर या अपनी मात्र भाषा का ही प्रयोग करते हैं
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बचपन की भाषा हमारी मातृभाषा



           मातृभाषा के साथ हमारे बचपन की बहुत सी मधुर स्मृतियां जुड़ी हुई होती हैं इस कारण वह बड़ी मनोहर मालूम होती हैं उसे बोलने और सुनने के लिए हमारे मुख और कान की पेशियां अभ्यस्त हो जाती हैं और उसके उच्चारण व श्रवण में हम को अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता। एक प्रकार का अपूर्व सुख प्राप्त होता है जो आनंद हमको अपनी मातृभाषा के गायन में होता है वह किसी दूसरी भाषा के गायन में नहीं आता
            मात्र भाषा के शब्दों में हमारी जातीय संस्कृति का इतिहास छिपा होता है उसके द्वारा हमने अपने घर वालों को और जाति वालों के साथ एक संपत्ति सूत्र में बन जाते हैं और हम उनके हृदय पर अपनी बात पहुंचा सकते हैं जिस प्रकार माथे पर तिलक छाप आदि ब्राह्मण चिन्ह धार्मिक समूह का संगठित करने में सहायक होती हैं उसी प्रकार मातृभाषा अपने व्यवहार करने वालों में एक आरक्षित प्रेम भाव उत्पन्न कर देती है मातृभाषा का प्रचार जातीय गौरव को बढ़ाता है उसका व्यवहार करते हुए हमको यह अनुभव होने लगता है कि हमारी कुछ निजी संपत्ति है मातृभूमि से हम को बांधे रखने तथा जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी का भाव उत्पन्न करने में ही मातृभाषा विशेष रूप से सहायक होती है
         मातृभाषा द्वारा शिक्षित और गरीबों तथा अमीरों के बीच का अंतर मिट जाता है जब हम अपनी मातृभाषा में बातचीत करने लग जाते हैं अपने लोगों को अपने मालूम होने लगते हैं उनके साथ हमारा सहकारिता का भाव बढ़ जाता है आजकल जो विचार और क्रिया में विच्छेद है और मातृभाषा का समुचित आदर ना होने के कारण ही हो रहा है। विचार पढ़े लिखे लोगों के हाथ में है जो प्राय मातृभाषा से विमुख रहते हैं और क्रिया पर आए मातृभाषा भाषी अनपढ़ों के हाथ में हैं इसी विचार और क्रिया के पीछे के कारण बहुत सी सामाजिक सुधार संबंधी योजनाएं निष्फल हो जाती हैं।
मातृभाषा के महत्व
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हमारी पहचान हमारी मातृभाषा

          भारतवर्ष में जो मौलिकता का अभाव है उसका बहुत कुछ कारण यह भी है कि हमारी शिक्षा का माध्यम हमारी मातृभाषा नहीं है हम विचार किसी और भाषा में करते हैं और शिक्षा दूसरी भाषा में इसलिए हमारी शिक्षा हमारे मानसिक संस्थान का अंग नहीं बन पाती इसलिए वर्तमान शिक्षा द्वारा प्राप्त ज्ञान फलता फूलता नहीं है उस ज्ञान का अपने देश भाइयों को भी हम लाभ नहीं दे सकते ज्ञान मनन से बढ़ता है और मनन के लिए पारस्परिक आदान-प्रदान आवश्यक है यह आदान-प्रदान और विचार विनियम में जितना व्यापक मातृभाषा द्वारा हो सकता है उतना दूसरी भाषा द्वारा नहीं हो सकता।
         मातृभाषा माता के दूध के समान पवित्र और स्वास्थ्यवर्धक है माता के सामान्य हमारी गुरु है और उसी के सामान स्नेहमई है। यह मातृभाषा का व्यवहार ज्ञान के विस्तार तथा उसके मौलिकता उत्पन्न करने में एवं जातियां जीवन की  वृद्धि में सबसे अधिक सहायक होती है मातृ भाषा की उन्नति सब प्रकार की उन्नति का मूल है
          क्योंकि भाषा की उन्नति के साथ विचार की स्पष्टता आती है और विचार की बुद्धि होती है विचार ही सारी क्रियाओं का मूल स्रोत है यदि यदि विचार में शक्ति और स्पष्टता है तो हमारी क्रियाओं का प्रवाह आकुंठित रूप से बहता रहेगा और हम उत्तरोत्तर उन्नति करते जाएंगे।।

    

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