विश्व शांति के उपाय। international peace day
विश्व शांति के उपाय
युद्ध मनुष्य का पार्श्विक प्रवृत्तियों का एक सामूहिक प्रदर्शन है सभ्यता के नियम विधानों ने व्यक्तियों की पर्शविक्ता पर तो बहुत कुछ नियंत्रण कर रखा है पर जहां तक राष्ट्रों का प्रश्न है मनुष्य अपनी पार्श्विक अवस्था से बहुत आगे नहीं बढ़ा है आदिकाल से युद्ध होते आए हैं और मनुष्य जाति की धन और यश लिप्साकी बलिवेदी पर कोटि-कोटि क्या असंख्य नरमेध होते रहे हैं युद्ध के दिनों में धर्म नीति का ह्रास हो जाता है और वन्य या हिंसा पशुओं की नीतियों का व्यापार चल पड़ता है विज्ञान ने राष्ट्र के नख और दांतों को सुदूर व्यापी और तीक्ष्णतम बना दिया जाता है युद्ध के दिनों में मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क की सारी शक्तियां जनसंहार में केंद्रित हो जाती हैं और उसके फल स्वरुप जब ध्वंस होता है वह कल्पना नित है प्रजातंत्र राज्यों के स्वतंत्रता संबंधी मूल्यों को भुला दिया जाता है और अपनी धर्म की धारणाओं नैतिक मानव और मानवता पर कोमल वृत्तियों को तिलांजलि दे बैठते हैं हमारा सौंदर्य बोध नष्ट हो जाता है कला और साहित्य की गति निम्न हो जाती है और स्वतंत्र नागरिकों की जबानों पर ताले लग जाते हैं चारों और विश्वास विभक्त दुख और संताप का समय अच्छा जाता है सारे निर्माण कार्य स्थगित हो जाते हैं और मनुष्य भया करांत हो जाता है
बीसवीं शताब्दी में जो संसार में एक के बाद एक प्रलय युद्ध हुए युद्धों में जनधन की जो हानि हुई वह अकथनीय है न जाने कितनी माताएं निसंतान हुई और न जाने कितनी सौभाग्य श्री युद्ध के रक्त प्लावन में विलीन हो गई। इंडिया ने भीषण आर्थिक परिणामों से संसार आज भी क्षतिग्रस्त है इन युद्धों में हारे हुए राज्यों की तो कमर ही टूट जाती है और जीते हुए राज्य भी मृत प्राय हो जाते हैं जीते हुए राज्य की जनता कर- भार से दबकर हाथ पैर भी नहीं दिला पाती यदि जीत होती है तो शोक,संताप ,विग्रह होता है।
युद्ध की इस भयंकरता से बचने के लिए आदिकाल से प्रयत्न होते आए हैं युद्ध से पहले सभी लोग युद्ध निवारण दूत भेजा करते थे महाभारत को बचाने के लिए स्वयं भगवान कृष्ण दुर्योधन के दरबार में दूत बनकर गए थे भगवान रामचंद्र जी ने अंगद को दूत बनाकर भेजा था। जिस प्रकार मनुष्य युद्ध जाता है उसी प्रकार शांति भी चाहता है मनुष्य युद्ध भी इसलिए लड़ता है कि भावी युद्ध बंद हो जाए।
शांति प्रिय राजा सम्राट अशोक
samrat Ashok |
युद्ध रोकने के उपाय चिरकाल से होते आ रहे हैं हमारे यहां सबसे अधिक शांतिप्रिय महाराजा अशोक हुए हैं कलिंग के जनसंहार से उनका हृदय परिवर्तन हो गया था और उन्होंने युद्ध से विराम लेकर शांति का साम्राज्य फैलाया उनके राज्य चिन्ह को आज भारत ने अपनाया है गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी बड़े जोरदार शब्दों में युद्ध की निंदा की है।
यूरोप में भी टॉलस्टॉय आदि शांति के प्रचारक रहे है। हमारे देश के परम पूज्य महात्मा गांधी शांति वादियों में आते हैं वे अपने स्वार्थ से पहले दूसरे के स्वार्थ को देखते हैं बापू के नाम पर शांति निकेतन में संसार के शांति वादियों की एक बड़ी सभा दिसंबर सन 1948 में हुई थी।
अंतरराष्ट्रीय धरातल पर विश्व शांति के दो महान पर इतने हुए। एक प्रथम महायुद्ध के पश्चात् सन् 1920 में वोटरों विल्सन के उद्योगों द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय संघ और दूसरा पिछले महा युद्ध के परिणाम स्वरूप अस्तित्व में आया हुआ संयुक्त राष्ट्र संघ। पहले का कार्य केंद्र जनेवा था और दूसरे का लेख सक्सेस दोनों की स्थापना का उद्देश्य राष्ट्र की परस्पर एक वैध मार्गों से तय करना और युद्ध की संभावना को न्यून करना।
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